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शब्दार्थ | M
सत्र
भावार्थ
अनुवादक़- बालब्रह्मचारिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
अ०
{हृष्ट तु०तुष्ट जा०यावत् न० नमस्कारकर मा० एकमास की भि० भिक्षु प्रतिमा उ० अंगीकारकर वि०विचरने लगे || २५ || से० वह खं खंदक अ० अनगार मा० एकमास की भि० भिक्षु प्रतिमा अ० यथासूत्र यथाकल्प अ यथामार्ग अ० यथातथ्य अ० यथा सम्यक् का काया से फा० स्पर्शे पा० पाले सो० संभाग करे ती दोषटाले पू० पूर्ण करे कि कीर्तनकरे अ०पाले आ० आज्ञा से आ० आराधे स० सम्यक् का काया से फा० स्पर्शकर जा० यावत् आ आराधकर जे० जहां स० श्रमण भ० भगवन्त अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ जाव नमंसित्ता मासियंभिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥२५॥ तणं से खंदए अणगारे मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं, अहाकप्पं, अहामग्गं, अहातच्चं, अहासमं, सम्मं कारणं फासेइ, पालेइ, सोमेइ, तीरेइ, पूरेइ, किहेइ अणुपालेइ, आणाए आराहेइ; सम्मं कारण फासित्ता जाव आराहेत्ता, जेणेव मा अंगीकार कर विचरने लगे || २५ ॥ तत्र श्री खंदक अनगार जैसी सूत्र में एक मास की भिक्षु प्रतिमा की विधि कही है वैसी भिक्षु प्रतिमा को कल्प अनुसार, मार्ग अनुसार पालने लगे. वैसे ही क्षयोपशम) भाव से अतिक्रमे नहीं. सम्यक् प्रकार से काया से स्पर्शी, विधि से ग्रहण की, वारंवार उपयोग रखकर पाली, पूर्ण की, कीर्ति की अनुपालना की यावत् आज्ञा पूर्वक आराधी. सम्यक् प्रकार काया से स्पर्श कर यावत् आज्ञासे आराध कर जहां श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी थे वहां आये, आकर श्रमण
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