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48 अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सम्मविट्ठी रासजिम्म कडझुम्म जेरइयाणं भंते ! कओ उववति ? एवं जहाः पढमो उद्देसओ, एवं चउसुवि जुम्मेसु चत्तारि उद्देसगा भवसिद्धिय सरिसा कयन्वा ॥ सेवं भंते ! २ त्ति ॥ ४१ ॥ ८८ ॥ ॥ कण्हलेस्से समद्दिट्टी रासीजुम्मः णेरइयाण भंते! कओउववज्जति, एएवि कण्हलेस सरिसा चत्तारिवि उद्देसमा कयव्या, एवं सम्मद्दिट्टसिवि भवसिद्धिय सस्सिा अट्ठावीसं उद्देसगा कायब्वा, सेवं भंते ३ ति॥ जाव विहरइ ।। ४१ ॥ ११२॥ + ॥मिच्छट्टिी रासीजुम्म कडजुम्म णेरइयाणं भंते ! कओ उवव जति ? एवं एत्थवि मिच्छादिट्टी अभिलावणं अभवसिद्धिय सरिसा अट्टाबीसं उद्देसगा कायव्वा । सेवं भंते ! २ त्ति ॥ ४१ ॥ १४०॥
कण्हपक्खिय राजुम्म कडजुम्म जेरइयाणं भंते ! कओ उववज्जति? एवं अभवउद्देशा कहा वैसे ही कहना. ऐसे ही चारों युग्मों में चार उद्देशे भवसिद्धिक जैसे कहना, अहो भगवन ! आपके वचन सत्य हैं ॥ ४१ ॥ ८८ ॥ कृष्ण लेश्यावाले समष्टि राशियुग्म कृतयुग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों कृष्ण लेश्या जैसे चार उद्देशे कहना, यों भवसिद्धिक जैसे समदृष्टि के अठावीस उद्देशे कहना, अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यावत् विचरने लगे ॥ ४१ ॥ ११२ ॥ अहो भगवन् ! मिध्यादृष्टि राशियुग्म कृतयुग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों अभवसिदिक जैसे अठावीस
wamini anmmmmm प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदव सहायजी ज्वालामसादजी..
भावार्थ
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