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श्री अमोलक ऋषिजी
तेउलेस्सेहिवि चत्तारि उद्देलगा ओहिया सरिसा ॥ ४१ ॥ ४८ ॥ पम्हलेस्सेहिवि चत्तारि उद्देसगा ॥ ४१ ।। ५२ ॥ * ॥ सुक्कलेसहिवि चत्तारि उद्देसगा ओहिय सरिसा ॥ एवं एएवि भवसिद्धिएहिवि अट्ठावीसं उद्दसगा भवंति ॥ सेवं भंते ६ त्ति ॥ ४१ ॥ ५६ ॥ * ॥ अभवसिद्धिय रासीजुम्म कडजुम्म णेरइयाणं भंते ! कओ उववज्जति ? जहा पढमो उद्दसओ णवरं मणुस्साणं णेरइया य सरिसा भाणियव्वा ॥ सेसं तहेव ॥ सेवं भंते ! २ त्ति ॥ एवं चउवि जुम्मसु चत्तारि उद्देसगा ॥ ४५ ॥ ६० ॥
॥ कण्हलेस्सा अभवसिद्धिय TE तेजो लेश्या के चार उद्देशे औधिक जैसे ॥ ४१ ॥ ४८ ॥ * ॥ पद्म लेश्या के चार उद्देशे
॥४१॥५२॥ + ॥ शुक्ल लेश्या की साथ चार उद्देशे औधिक जसे. यों भवसिद्धिक के अठावीस उद्देशे और औधिक के अठावीस यो सब मीलकर ५६ उद्देश हुए. अहो भगवन् ! आपके बचए सत्य हैं ॥ ४१ ॥ ५६ ॥
॥ अहो भगवन् ! अभयसिद्धिक राशियुग्म कृत} all युग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं ? जैसा पहिला उद्देशा कहा वैसे ही कहना परंतु मनुष्य व नारकी की वक्तव्यता समान कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यों चारों युग्यों में चार उद्देशे कहना. १४१ ॥ ६० ॥ + कृष्ण लेश्या वाले अभवसिद्धिक नारकी कहां से उत्पन होते हैं ।
Tाराजाबहादर लाला मुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादमी.
47 अनुवादक-बालबम