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शब्दार्थ
8. पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
को कोडा कोडा आ० लंबा वि० चौडा अ० असंख्यात जो० योजन को क्रोडा कोड ५० परधि | में अ० है से० उस का अं: अंत का० काल से लो० लोक न० नहीं क० कदापि न० नहीं आ० हुवा न०० नहीं कदापि न० नहीं है न० नहीं कदापि न न होगा भु० हुवा भ० होता है भ० होगा धु.ध्रुव नि० नित्य सा० शाश्वत अ० अक्षय अ० अव्यय अ० अवस्थित णि नित्य ण नहीं है से उस का अं० अंत भा० भाव से लो० लोक अ० अनंत वर्ण प० पर्यव गं० गंध र० रम फा० स्पर्श अ. अनंत सं०
खेत्तओणं लोए असंखजाओ जोयण कोडाकोडीओ आयांमविक्खमेणं, असंखजाओ। जोयण कोडाकोडीओ परिक्खेवेणं पण्णत्ता, आत्थि पुणं सेअंते. ॥ कालओणं लोए न कयाइ न आसि,न कदाइ न भवइ,न कदाइन भविस्सइ, भुविसु य, भवतिय, भाविस्सइय धुवे, णियए, सासए, अक्खए, अन्वए, अवट्ठिए, णिच्च, णत्थिपुणसे अंते, भावओणं
लोए अणंतावण्ण पजवा, गंधरसफास. अणंता संट्ठाण पजवा, अणंता गुरुय लहुय } है और परिधि भी उस की असंख्यात योजन की है ताहपि वह लोक अंत सहित है. काल से पहिला लोक नहीं था वैसा नहीं, वर्तमान में नहीं है वैसा नहीं, भविष्य में नहीं होगा वैसा नहीं; परंतु अतीत काल में था, वर्तमान में है और भविष्य में होगा. और भी वह धृव, नित्य, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित व नित्य है. इसलिये कालसे लोक का अंत नहीं है. भाव से लोक के अनंत वर्ण पर्यव गंध, रस व स्पर्श है।
*883> <दूसरा शतक का पहिला उद्देशा 880%82
भावार्थ