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________________ ummarvasnavrwasna ३०६० अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषजी उपवाओ,॥ णकत्थइ पडि हो जाय अणुत्तराविमाणत्ति ॥ ३ ॥ अह भंते ! सबपाणा जाव अणंतखुत्तो ॥ एवं सोलससुवि जुम्मेसु भाणिय जाव अणतखुत्तो, णवरं परिमाणं जहा वेइंदिया ॥ सेवं भंते ! भंतत्ति ॥ ४०॥ १॥ * पढम समय कडजुम्म २ मणिपंचिंदिया भंते ! कओ उववओ, परिमाणं, आहारो, जहा एएमिचेर पढमो उद्देसए, ओगाहणा बंधो, वेदो, वेदणा, उदयी, उदीरगाय, जहा वेइंदियाणं पढम मयाणं तहेब कण्हलेस्सा वा जाव सुकलेस्मा या, सेसं जहा बेइंदियाणं पढम समइयाणं जाव अणंतखुत्तो, णवरं इत्थिोदगा वा पुरिसवेदगा बा, गपुंगगोदगा वा सणिणो, विमानपर्यन्त कहना नहीं॥३॥अब अहो भगान् सब प्राण यावत् अनंतवक्त उत्पन्न हुने यों सोलह युग्म कहना यावत् अनंतवक्त, परंतु परिमाण घेइन्द्रिय जैसे कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यों चालीसा का पहिला उद्देशा ॥ ४० ॥१॥ अहो भगवन् ! प्रथम समय कृतयुग्म २ संज्ञी पंचेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? यो उपपत, परिमाण, आहार वगैरह पहिला उद्देशे जैसे कहना. अवगाहना, बंध,वेद वेदना,उदय व उदीरणा बदन्द्रियके प्रथम शतक जेसे कहना.परंतु कृष्ण लेश्या अथवा यावत् शुक्ल लेश्या शेष बेइन्द्रिय के प्रथम समय के यात अनंतवक्त परंतु स्त्री वेदी,पुरुष वेदी व नपुंसक वेदी तीनों बंदी हैं संजीह परंतु असंही नहीं शेर सोलह युग्ध परिमाण पूर्वोक्त जैसे कहना.अहो भगवन्! आपके वचन सत्य हैं प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी भावार्थ -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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