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+१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
* सप्तत्रिंशतम शतकम् * कडजुम्म तेइंदियाणं भंते ! कओ उववजंति ? एवं तेइंदियसुवि बारससया कायव्वा वेइंदिय सयसरिसा, णवरं ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ भागं उकोपेणं तिणि गाउयाई ॥ ठिई जहणणं एवं समयं उक्कोतेणं एगूणवण्ण राइंदियाई सेसं तहेव ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ तेइंदिय महाजुम्म सया सम्मत्ता ॥ सत्ततीसइमं सयं सम्मत्तं ॥ ३७ ॥ x
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*प्रकाशक-सजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ
अब सेंतीसे शतक में तेइन्द्रियका कथन करते हैं. अहो भगवन्! कृतयुग्म २ तेइन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते है ? यों तेइन्द्रिय के बारह शतक बेइन्द्रिय जेसे कहना. परंतु अवगाहना जघन्य अंगुलका असंख्यातवा भाग उस्कृष्ट तीन गाऊ (कोस) भव स्थिति जघन्य एकसमय उत्कृष्ट उन्नपच्चास ! ४२) रा दिन ॥ ओ भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह तेइन्द्रिय महायुग्म नामक सेंतीसवा शतक संपूर्ण हवा ।। ३७ ।।