SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3072
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०५४ +१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + * सप्तत्रिंशतम शतकम् * कडजुम्म तेइंदियाणं भंते ! कओ उववजंति ? एवं तेइंदियसुवि बारससया कायव्वा वेइंदिय सयसरिसा, णवरं ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ भागं उकोपेणं तिणि गाउयाई ॥ ठिई जहणणं एवं समयं उक्कोतेणं एगूणवण्ण राइंदियाई सेसं तहेव ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ तेइंदिय महाजुम्म सया सम्मत्ता ॥ सत्ततीसइमं सयं सम्मत्तं ॥ ३७ ॥ x + x *प्रकाशक-सजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी भावार्थ अब सेंतीसे शतक में तेइन्द्रियका कथन करते हैं. अहो भगवन्! कृतयुग्म २ तेइन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते है ? यों तेइन्द्रिय के बारह शतक बेइन्द्रिय जेसे कहना. परंतु अवगाहना जघन्य अंगुलका असंख्यातवा भाग उस्कृष्ट तीन गाऊ (कोस) भव स्थिति जघन्य एकसमय उत्कृष्ट उन्नपच्चास ! ४२) रा दिन ॥ ओ भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह तेइन्द्रिय महायुग्म नामक सेंतीसवा शतक संपूर्ण हवा ।। ३७ ।।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy