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48 पंचमा विवाह पण्णति (मयवति ) सूत्र 428+
पवरं चउत्थ छ? दसमेसु उववाओ गल्थि देवस्स, सेवं भंते ! मतेत्तिः ।। पणतीसइमेसए वितिय एगिदिय महाजुम्म सयं ॥ ३५ ॥ २ ॥ एवं णीललेस्रोहिंवि सयं, कण्ह लस्स सय सरिसं एकारस उद्देसगा तहेव, सेवं भैते ! भंतेत्ति ॥ ततिय एगिदिय महा जुम्म सयं सम्मत् ॥ ३५ ॥ ३ ॥ एवं काउलेस्सेहिंत्रिसयं, कण्हलेस सयसरिस ॥ सेवं भंते चउत्थ एगिदिय महजुम्म सयं ॥ ३५ ॥ ॥ ४ ॥ भवसिद्धिय कडजम्म कड जुम्म एगिदियाणं भंते ! कओ
उववजंति ? जद्दा अहिय अयं णवरं एकारसवि उदेसएसु ॥ अह भंते ! सव्वपाणा गमा पकसरिखे कहना. परंतु चौथा, छठा व दश वे उद्देश में देव नहीं उत्पन्न होते हैं. अहो भगवन् ! आपके . बचन सत्य हैं यों पेनीसवे शाक में एकेन्द्रिय महा युम्य नामक द्वारा शतक संपूर्ण हुवा. ॥ ३५ ॥ २॥ar है जैसे कृष्ण लेश्या का अग्यारह उदेशा सहित शतक कहा वैसे ही नील लेश्याका शतक जानना. अ
भगवन् : आपके वचन मस हैं यह पेंत सवा शतक में तीसग एकेन्द्रिय महाशनक संपूर्ण हुवा ॥ ३५॥३॥ । ऐसेही कापोतलेश्या को कृष्णलश्या के शतक समान कहना. अहो भगवन्! आपके बचनसय, हैं यह चौथाई एकेन्द्रिय महायुग्म शक हुवा. ॥ ३५ ॥४॥ अहो भगवन् ! भवसिदिक कृत युग्म २ एकेन्द्रिय "
पैतीसका शतक का ३५ उइंशा 45