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________________ 4. अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पि तिकालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं अतोमुहत्तं ॥ एवं ठितीएघि जाव अणंत खुत्तो ॥ एवं सोलसुवि जुम्मा भाणियन्वा ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ पेंतीसम सयस रितीओ ॥ ३५ ॥२॥ * ॥ पढमसमय कण्हलेस्स कडजुम्म २ एगिदिपाणं भंत ! कओ उपवजंति जहा पढमुहसए पवरं तेणं भंते! कण्ह लेस्सा ? हंता कण्ह लेस्मा, से तहेव सेवं भंते ! भंतेत्ति एवं जहा ओहियसए एक्कारन उद्देमगी भाणियां तहा कण्ह लेससवि एकारन उद्दे. सगा भाणियमा, पढमो ततिओ पंचमो य परिस गमगा, सेसा अट्ठवि सरि गमगी. है ? हो गौतमकृष्ण लेश्या वाले हैं. अही भंगान्! कृत्य युग्यरएकैन्द्रिय कितने काल पर्यत रते हैं? अहो गौतम! जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंतर्मन. एमेही स्थिति का यावत् अनंतवक्तं उत्पन्न का सोलह युगों में कहना अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यापैतीसरा शतकं को दूसरा उद्देशा ॥ ३५ ॥२॥ प्रथम समय कृष्ण लेश्या वाले कृत युग्प२ए केन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं? वगैरह जैन पहिला उद्देशा कहा तैमा यह भी कहना परंतु अहो भगवन् वक्या कृष्ण लेश्या वाले हैं?हां गौतमाये कृष्ण लेश्या वाले हैं, शेष वैसे ही कहना. अहो भगान! आपके वचन सत्य हैं यों से अधिक शतक में अग्यारह उद्देशे कई वैसे ही कृष्ण लेश्य के भी अग्यारह उद्देशे कहना. निन में पहिला, तीसरा व पांचवा गमा एक सरिखा कहना. और शेष आठ71 प्रकाशक-रानावहादुर लाला मुखदनमहायजी ज्यालाममादजी. मावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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