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जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि सयाणि भणियाणि एवं अभवसिद्धिएहिंवि चत्तारि सयाणि भाणियन्वाणि, णवरं चरिम अचरिम वजा णव उद्देसगा भाणियन्वा, सेसे तंवेव, ॥ एवं एयाई वारस एगिदिय सेढीसयाई भाणियन्वाई | सेवं भंते भंतेत्ति । जाव विहरइ ॥ एगिदिय सढी सया सम्मत्ताई ॥ एगिदिय मेखिसयं चउत्तीसम सम्मत्तं ॥ ३४ ॥ x जैसे भवसिद्धिक की साथ चार शतक कहे वैसे ही अभयसिद्धिक की साथ चार शतक कहना. परंतु चरिम अचरिम के दोनों उद्देश नहीं कहना. यो एकेन्द्रिय उत्पन्न होनेकी श्रेणी के बारह शतक संपूर्ण हुए. अहो भगवन् ! आपके बचन सस्य हैं. यों एकेन्द्रिय श्रेणी शतक नामक चौतीसवा शतक संपूर्ण हुवा ॥३॥
भावार्थ
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++ पंचवान विवाह पचि
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