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2. भवासिडिय एगिदिएहि सय, पंचमं सम्मत्तं ॥ ३४ ॥ ५ ॥
कइ विहाणं भंते! कण्हलेस्स भवसिद्धिया एगिदिया? एवं जहेब ओहिय उद्देसओ ॥१॥
कइ विहाणं भंते ! अणंतरोववण्णगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिविया प० जहेव . अणंतरोबवण्णगा उद्देसओ ओहिओ तहेव॥२॥ कइविहाणं भंते! परंपरोववण्णग भवः } : सिद्धिया एगिदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा परंपरोववण्णग कण्हलेस भवसिद्धिय
एगिदिया ५० ओहिओ भेदो चउक्कओ जाब वणस्सइकाइयत्ति ।परंपरोवबण्णगा कण्हलेस्स
भवसिद्धिय अपज्जत्तग सुहुम पुढवीकाइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए. पुढवीए, एवं ? भवसिद्धिक एकेन्द्रिय की साय पांचवा शतक संपूर्ण हुवा ॥ ३४ ॥५॥ x. *
कृष्ण लेश्या वाले भवमिद्धिक का औधिक उद्देशा जैसे कहना ॥१॥ अहो भगवन्! अनंतरोत्पन्नक कृष्ण लेश्या वाले भवसिद्धिक के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! जैसे अनंतरोत्पन्नक का औधिक उद्देशा कहा वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! परंपरोत्पन्न भवसिद्धिक एकेन्द्रिय के कितने भेद कहे हैं. ? अहो गौतम ! पांच भेद कहे हैं. यों औधिक चार भेद कहे वैसेही वनस्पति काया पर्यंत कहना ॥२॥अहो भगवम् ! परंपरा उत्पन्न कृष्ण लेश्या वाले भवसिद्धिक अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया इस रमपम के. यों इस अभिकाप से
48 पंचमांग विवाह घण्णति ( भगवती ) सूत्र
- चौतीसवा तक का छठा
भावार्थ
देश
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