SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3043
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२८ 2. भवासिडिय एगिदिएहि सय, पंचमं सम्मत्तं ॥ ३४ ॥ ५ ॥ कइ विहाणं भंते! कण्हलेस्स भवसिद्धिया एगिदिया? एवं जहेब ओहिय उद्देसओ ॥१॥ कइ विहाणं भंते ! अणंतरोववण्णगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिविया प० जहेव . अणंतरोबवण्णगा उद्देसओ ओहिओ तहेव॥२॥ कइविहाणं भंते! परंपरोववण्णग भवः } : सिद्धिया एगिदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा परंपरोववण्णग कण्हलेस भवसिद्धिय एगिदिया ५० ओहिओ भेदो चउक्कओ जाब वणस्सइकाइयत्ति ।परंपरोवबण्णगा कण्हलेस्स भवसिद्धिय अपज्जत्तग सुहुम पुढवीकाइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए. पुढवीए, एवं ? भवसिद्धिक एकेन्द्रिय की साय पांचवा शतक संपूर्ण हुवा ॥ ३४ ॥५॥ x. * कृष्ण लेश्या वाले भवमिद्धिक का औधिक उद्देशा जैसे कहना ॥१॥ अहो भगवन्! अनंतरोत्पन्नक कृष्ण लेश्या वाले भवसिद्धिक के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! जैसे अनंतरोत्पन्नक का औधिक उद्देशा कहा वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! परंपरोत्पन्न भवसिद्धिक एकेन्द्रिय के कितने भेद कहे हैं. ? अहो गौतम ! पांच भेद कहे हैं. यों औधिक चार भेद कहे वैसेही वनस्पति काया पर्यंत कहना ॥२॥अहो भगवम् ! परंपरा उत्पन्न कृष्ण लेश्या वाले भवसिद्धिक अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया इस रमपम के. यों इस अभिकाप से 48 पंचमांग विवाह घण्णति ( भगवती ) सूत्र - चौतीसवा तक का छठा भावार्थ देश ।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy