________________
488
विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 488+
विसेसाहियं कम्मं पकरेंति ? गोथमा ! अणंतरोववण्णगा एगिदिया दुविहा ५० तंजहा अत्थेगइया समाउया समोववण्णगा, अत्थेगया समाउया विसमोववण्णगा ॥ तत्थणं जे से समाउया समोववण्णगा तेणं तुल्लठितीया तुलविसे साहियं कम्म परेंति ॥ तत्थणं जे ते समाउया विसमोववण्णगा तेणं तुल्लठितिया वेमाय विसाहियं कम्मं पकरेंति; से तेणट्रेणं जाव वेमार्य विसेसाहियं कम्मं पकरेंति सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥चउतीसइम सयस्स वित्तिओ उद्देसो॥ ३४ ॥ २॥
कइविहाणं भंते ! परंपरोववण्णगा एगिंदिया पं० ?गोयमा! पंचविहा परंपरोववण्णगा गया है यावत् विमात्रा से विशेषाधिक करते हैं ? अहो गौतम ? अनंतरोत्पक उत्पन्न एकेन्द्रिय के दो भेद , कई हैं. तद्यथा ! कितनेक सम आयुष्य वाले सम उत्पन्न होने वाले हैं और कितनेक सम आयुष्य वाले विषय उत्पन्न होने वाले हैं. उस में जो सम आयुष्य वाले व सम उत्पन्न वाले हैं वे तुल्यस्थिति वाले तल्यविशेषाधिक कर्म करते हैं और जो सम आयुष्य वाले व विषय उत्पन्न होने वाले हैं व तुल्यस्थिति वाले विमात्रा विशेषाधिक कर्म करते हैं इसलिये यावत् विमात्रा विशेषाधिक कर्म करते हैं. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं ॥ यह चौतीसबा शतक का दूसरा उद्देशा संपूर्ण हुचा ॥ ३४ ॥२॥ है अहो भगवन्! परंपरा उत्पन्न एकेन्द्रिय के कितनेक भेदकहे है ? अहो गीतमः परंपारा उत्पन्न एकन्द्रियके ।
भावार्थ
चौतीसवा शतकका पहिला उद्देशा 488