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42 अनुवादंक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी+
तहेव बंधति, तहेव वेदेति जाव अणंतरोबवण्णगाय वायरवणस्सइकाइया ॥ अणंतरोववण्णगा एगिदियाणं भंते ! कओ उववजति ? जहेव ओहिए उद्दसए भाणओ तहेव ॥ अणंतरोवषण्णए एगिदियाणं भंते! कइसभुग्धाया प. ? गोयमा दोणिसमुग्घाया प. तंजहा-वेषणासमुग्घाए य, कसायसमुग्धाए य ॥ ३ ॥ अणंतरोववण्णग एगिदियाणं भंते ! किं तुला?तीया तुलविसेसाहिये कम्मं पकरेति पुच्छा ? तहेव ; गोयमा ! अत्थेगइया तुलठितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेति, अत्थेगइया तुल'ठतीया वेमाय विसेसाहियं कम्मं पकरेंति ॥ से केण?णं भंते ! जाव वेमायवैसे ही बांधने का व वेदने का कहना. यावत अनंतर वादर वनस्पति काया अहो भगवन् ! अनंतरोत्तम एकेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ?अहा गौतम! जैसे अधिक उद्देशा कहा वैसेही अनंतरोत्पन्न के उत्पन्नक १ उद्दशा कहना. अहो भगवन् ! अनंतरोत्पन्न एकेन्द्रिय को कितनी ममुद्धात कही ? अहो मौतम ! वेदना व कषाय ऐसे दो समुद्धात कहीं.॥३॥ अहो भगवन् : अनंतरोत्पन्न तुल्यस्थिति वाले एकेन्द्रिय क्या तुल्य विशेषाधिक कर्म करते हैं पृच्छा ? अहो गोनम ! कितनेक तुल्यस्थिति वाले तुल्यविशेषाधिक कर्म करते हैं., कितनेक तल्यस्थिति वाले विमात्रा विशेषाधिक कर्म करते हैं अहो भगवान् ! किस कारन से ऐसा कहा।
..प्रकाशक-राजाबहादुरलाला सुखदेवसहायजी घालाप्रसाद नी*
भावार्थ