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सत्र
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी g+
जाव वेउब्धिय समुग्घाए ॥ १६ ॥ एगिदियाणं भंते ! किं तुल्लाठतीया, तुल्लक्सेि. साहियं कम्मं पकरेंति, तुल्लठितीया वेमाया विसेसाहियं कम्मं पकरेंति; वेमायाठतीया तुल्लविसेसाहियं कम्म पकरेंति, वेमायाठिय वेमाय विसेसाहियं कम्मं पकरेति ? गोयमा ! अत्थेगइया तुल्लठितीया तुल्लविसे साहियं कम्मं पकरेंति अत्थेगइया तुल्ल ठितीया, वेमायविसेसाडियं कम्म पकरेंति : अत्थेगडया वेमायठितीया तलविससाहियं कम्मं पकरेंति , अत्थेगइया वेमायठितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति. से
केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-अत्थेगइया तुल्लठिया जाव वेमाय बिसेसाहियं कम्म यावत् वैक्रेय समुदघात ॥ १६ ॥ अहो भगवन् ! तुल्य स्थितिवाले एकेन्द्रिय तुल्य विशेषाधिक कर्म बांधने हैं, तुल्य स्थितिवाले विशेषाधिक कर्म बांधते हैं, विमात्रा विषय स्थितिवाले तुल्य विशेषाधिक कर्म बांधते हैं, या विमात्रा स्थितिवाले विमात्रा विशेषाधिक कर्म बांधते हैं ? अहो गौतम ! कितनेक तुल्य स्थितिवाले, तुल्य विशेषाधिक कर्म बांधते हैं,कितनेक मुल्य स्थितिवाले विमात्रा विशेषाधिक कर्म बांधते हैं, कितनेक विमात्रा स्थितिवाले तुल्य विशेषाधिक कर्म बांधते हैं, और किततेक विमात्रा स्थितिवाले विमात्रा विशेषाधिक कर्म बांधते हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है कि कितनेक तुल्य स्थितिवाले यावत
• प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी चालाप्रसादी *
भावार्थ