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पंचमांगविवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र <angit
अट्टविहवंधगावि; जहा एगिदियसएमु जाव पज्जत्ता बाथर वणरंसइकाइँया ॥ अपज्जत्ता सहुम पुढवीकाइयाणं भंते ! कइकम्भप्पगडीओ वेदेति ? गोयमा ! चउहस्सकम्मप्प. गडीओ चेदेति, णाणावरणिज्जं, जहा एगिदियसएम जाब पुरिसर्वदयज्झं । एवं पादर वणस्सइ काइयाणं पज्जत्तगाणं ॥ १४ ॥ एगिदियाणं भंते ! कआ उवैवजात किं णेरइएहितो उववज्जति जहा वकंतीए पुढधीकाइयाणं उपवाओ ॥ १५ ॥ एगिदियाणं
भंते ! कइसमुग्धाया प. ? गोयमा ! चत्तारि समग्घाया पं० तंजहा-वेयणासमुग्धाए वनस्पतिकाया पर्यन्त कहना. अहो भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाया कितनी कर्म प्रकृतियों बांधे ? अहो गौतम ! सात अथवा आठ कर्म बांधे. यों एकेन्द्रिय के शतक में यावत् पर्याप्त बादर वनस्पतिकाया पर्यन्त कहना. अहो भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाया कितनी कर्म प्रकृतियों वेदे ? अहो। गौतम ! चौवह कर्म प्रकृतियों वेदे. यों जैसे एकेन्द्रिय शतक में ज्ञानावरणीय यावत् पुरुष वेद छोडना. ऐसे ही पर्याप्त बादर वनस्पतिकाया के पर्याप्त जानना ॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! एकेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं? क्या नारकी में से? यों भैमे पृथ्वीकाया का उपपात व्युत्क्रांति (पन्नवना में कहा) जैसे कहना ॥१५॥
भगवन् ! एकेन्द्रिय को कितनी समुद्धात कही? अहो गौतम : चार ख्मुद्घात कही वेदना समुद्घात
भावार्थ
चौतीसवा शतक का पहीला उद्दशा 480