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48 पंचमान विवाह पण्पत्ति (भगवति ) सूत्र 428
बिग्गहो जत्थि, सेसं तहेव ॥ पुरच्छिमिल्ले जहा सटाणे, दाहिणिल्ले एगसमइओ विग्गहो णत्थि, सेसं तहेव, उत्तरिल्ले समोहयाणं उत्तरिल्ले चेव उववज्जमाणाणं जहा संढाणे, उत्तारल्ले समोहयाणं पुरच्छिमिल्ले उववज्जमाणाणं, एवंचेव णवरं एगसमइओ विग्गहो णत्थि; उत्तरिल्ले समोहयाणं दाहिणिल्ले उववज्जमाणाणं जहा संट्राणे, उत्तरिल्ले समोहयाणं पञ्चत्थिमिल्ले उंचवज्जमाणाणं एगसमइओ विग्गहो णत्थि, सेसं तहेव जाप सुहुम वणस्सइकाइओ पज्जत्तओ, मुहुम वणस्सइ काइएसु पज्जत्तएस
चेव ॥ १२ ॥ कहिणं भंते! वादरपुढवीकाइयाणं ट्ठाणा पण्णता ? गोयमा ! संढाणेणं स्थान जैमे कहना. और उत्तर में उत्पन्न होने एक समय का विग्रह नहीं है; शेष वैसे ही कहना. पूर्व के चरिमांत में उत्पन्न होने का स्वस्थान जैसे और दक्षिण में एक समय नहीं है. शेष वैसे ही कहना. उत्तर में समुद्धात करके उत्तर में उत्पन्न होने का स्वस्थान जैसे कहना. उत्तर में समुदात करके पूर्व में उत्पन्न होनेका वैसे ही कहना, परंतु एक समय का विग्रह नहीं है, उत्तर में समुद्धात कर के दक्षिण में उत्पन्न होने का स्वस्थान जैसे कहना और उत्तर में समुद्धात कर के पश्चिम में उत्पन्न होने को एक समय का विग्रह नहीं है. पर्याप्त मूक्ष्म वनस्पति काया पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पति काया में उत्पन्न होने पर्यंत कहना. ॥ १२ ॥ यह एकेन्द्रिय के उत्पत्ति का अधिकार कहा. अब एकेन्द्रिय के स्थानादिक की प्ररूपना करते हैं. अहो'
चौतीसवा शतक का पहिला उद्देशा 4
भावाथ