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________________ सूत्र ०७ भावार्थ 48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी दाहिणिले चेव उववारयव्वो, तहेव णिरवसेसं जाव सुहुम वणरसइकाइओ पज्जत्तओ सुम वणस्सइ काइएस चेत्र पज्जत्तरसु दाहिणिले चरिमंते उववाइओ, एवं दाहिजिले समोहओ पच्चच्छिमिल्ले चरिते उनवाएयन्वो णवरं दुतमइए तिसमइय चसमइओ विग्गहो सेसं तहेव, दाहिणिल्ले समोहओ उत्तरिल्ले चरिमंते उबवायचो जब सट्टा तहेव; एगसमइय दुसमइय तिसमइय चउसमइय विग्गहों, पुरच्छिमिल्ले जहा पच्चच्छिमिल्ले, तहेव दुसमइय तिसमइय, पच्चच्छिमिल्ले चरिमंते समोहयाणं पज्जच्छिमिल्ले उववज्जमाणाणं जहा सट्टाणं, उत्तरिल्ले उववरजमाणाणं एगसमइओ पश्चिम के चरिमांत में उत्पन्न होने का कहा वैसे ही दक्षिण चरिमांत में मारणांतिक समुद्धात करके दक्षिण के चरिमांत में उत्पन्न होने का कहना यावत् सूक्ष्म पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकाया पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकाया में उत्पन्न होने वहां तक कहना. यों दक्षिण में समुद्रात करके पश्चिम में उत्पन्न होने का कहना. परंतु यहां पर दो, तीन व चार समय के विग्रह से उत्पन्न होने का कहना. दक्षिण में समुद्धात करके उत्तर में उत्पन्न होने का स्वस्थान जैसे कहना. और पूर्व का पश्चिम जैसे दो समय तीन समय व चार समय का कहना. पश्चिम के चरिमांत में समुद्धात करके पश्चिम के चरिमांत में उत्पन्न होने का स्व * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी # ३०१२
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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