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________________ परमांम विवाह पण्णत्ति (भगवती) वणस्सइकाइएमु जहा पुढवीकाइएमु उववातिओ, तहेब चउक्कएणं भेदेणं उवधाते. यत्वो ॥ एवं पजत्ता वादर तेउकाइआव । एण्णुचेव ठाणेसु उवावातयव्यो । वाउकाइय वणस्सइ काइयाणं जहेव पुढवीकाइओ उबवाइओ तहेव भाणियन्वो ॥७॥ अपज्जत्ता मुहुम पुढवीकाइएणं भंते ! एत्थवि लोगखेत्तणालीए वाहिरिल्ले खेत्ते समोहए समाहएता, जे भविए अहे खेत्तणालीए बाहिरिले खेत्ते अपजत्ता सुहुम पुढविकायत्ताए उववजिए सेणं भंते ! कतिसमए ? एवं उढलोग खत्तणालीए वाहि. रिले खेत्ते समोहयाणं अहेलोय खत्तणालीए वाहिरिले खत्ते उववजयाणं सोचेव कितने समय के विग्रह से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! एक दो अथवा तीन समय के विग्रह से उत्पन्न । होवे बगैरह अर्थ वैसे ही कहना. ऐगे ही पर्याप्त बादर ते उकाया का जानना. वायुकाया व बनस्पतिकाया का पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने जैसे कहना ॥ ७॥ अहो भगवन् : अपर्यम सक्ष्म पृथ्वीकाया इम लय के क्षेत्र नालिका के वाहिर के क्षेत्र में मारणांतिक समुद्धात करके जो नीच के क्षेत्र की नालिका के है वाहिर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायापने उत्पन्न होने योग्य होबे वह कितने मपय के विग्रह से उत्पन्न होवे ? गौतम ! ऐसे ही की लोक क्षेत्र मालिका के बाहिर के क्षेत्र में मारणांतिक समुद्धात कर के अधो। चौतीसवा शतक का पहिला उद्देश भाषा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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