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सत्र
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49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 22
चउसमएणवा विग्गहेणं उववज्जेज्जा ॥ से केण?णं अट्ठो ? जहेव रयणप्पभाए तत्र सत्तसेड्डीए । एवं जाव अपजत्ता ॥ वादर तेउकाइएणं भंते ! समय खत्ते समोहए समोहएता जे भविए उड्डलोए खेत्तगालीए वाहिारले खेत्ते अपजात्ता सुहुम तेउकाइयत्ताए उववाजित्तए सेणं भंते ! सेसं तंचेव ॥ अपज्जत्ता वादर तेउकाइएणं भंते ! समयखेत्ते समोहए जे भविए समयखत्ते अपजत्ता वादर तेउकाइयत्ताए उववजित्तए सेणं भंते ! कइ समएणं विग्गहेणं उववजेजा ? गोयमा ! एगसमइएण वा, दुसमइएणया, तिसमइएणवा विग्गहणं उववजेजा । से केणटेणं भंते ! अट्ठो?
जहेव रयणप्पभाए तहेब सत्तसेढीए । एवं पज्जत्ता बादर तेउकाइयत्ताएवि; वाउकाइएसुय समय के विग्रह से उत्पन्न होवे, अहों भगवन् ! यह किस तरह वगैरह रत्नप्रभा जैसे अर्थ कहना. ऐसे ही अहो भगवन् ! अपर्याप्त वादा तेउकाया मनुष्य क्षेत्र में मारणांतिक समुद्धात करके ऊर्बलोक की क्षेत्र
नाली के बाहिर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म तेउकायापने उत्पन्न होने योग्य होवे वह कितने समय के के विग्रह मे उत्पन्न होवे बगैर शेप सब वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! अपर्याप्त बादर तेउकाया मनुष्य
क्षेत्र में मारणांतिक शमुद्धात करके मनुष्य क्षेत्र में अपर्याप्त बादर तेउकायापने उत्पन्न होने योग्य होवे वह
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ