SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3018
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावार्थ 4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + वार काइया अपतगाव पज्जतगाय जाहे तेसु क्षेत्र उववज्जति ताहे, जश्चैव रयणभाए तहेव एगसमइए दुसमइय हिग्गहा भाणियन्त्रा, सेसं जहा रयणप्पभाए तहेव णिरवसेसं, जहा सकरप्पभाए वत्तव्वया भणिया, एवं जाव अहे सत्तामाए भाणियव्वा, ॥ ६ ॥ अपजत्ता सुहुम पुढवकाइयाणं भते ! अहे लोयखेतणाली वाहिरिले खेत्ते समोहए समोहना जे भरिए उढलोए खेत्तणालीए बाहिरिले खेत्ते अपजस्ता सुम पुढीका इयत्ताए उववर्जित्तए, सेणं भंते ! कइसमइए विग्गणं उववज्जेजा ? गोयमा! तिसमइएणवा चउसमइएणवा चिग्गहेणं उत्रवज्जेज्जा से केणट्टेणं मंते ! एवं वुच्चवैसे ही एक समय, दो समय व तीन समय के विग्रह से उत्पन्न होते हैं ऐसे कहना. शेष सब रत्नप्रभा । जैसे कहना. जैसे शर्कर प्रभा की वक्तव्यता कहीं वैसे ही नीचे की सातवी तमतमा पधी की वक्तव्यता कहना. ।। ६ ।। अहो भगवन् ! अपर्याप्त सुक्ष्म पृथ्वी काया अधोलोक की नाली के शहर के क्षेत्र में ( मारणांतिक समुद्धात कर के ऊर्ध्व लोक क्षेत्र नाली के बाहिर के क्षेत्र में अपर्याप्त दक्ष पृथ्वी कायापने उत्पन्न होने योग्य होवे वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होवे ! अहां गौतम ! तीन समय या ज्वार समय के विग्रह से उत्पन्न होते. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है यावत् • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्यालाममादजी - २०००
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy