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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
वीसट्टाणेसु उववाएयव्वो १६० ॥ सुहुम तेउकाइओबि,अपजत्तओ पजत्तीय एएसु १... चेव वीससुट्ठाणेसु उबवातेयव्यो २०० ॥ अपज्जत्तए वायर तेउकाएणं भंते । मणुहै .. स्सखेलें समोहए समोहएता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुवढीए पञ्चस्थिमिल्ले
चरिमंते अपजत्त सुहम पुढवीकाइयत्ताए उववजित्तए, सेणं भंते ! कइसमएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, सेसं तहेव जाव से तेणटेणं, एवं पुवढीकाइएसु चउबिहेसुवि उवावतेयव्यो । एवं आउकाइए पु चउबिहेसु, तेउकाइएसु अपज्जतएसु पजत्तएसुय.
एवं चेव उववाएयव्यो ॥ अपजत्ता वादर तेउकाइएणं भंते ! मणुस्सखेत्ते समोहए वादर पर्याप्त व अपर्याप्त के सब मील कर ८० आलापक जानना. यों १६० आलापक हुए. सूक्ष्म सेउकाया के पर्याप्त व अपर्याप्त के बीस २ आलापक मीलकर ४० आलापक पूर्वोक्त जैसे जानना. यो सब मीलकर २०० आलापक हुए. अहो भगवन् !' अपर्याप्त बादर तेउकाया मनुष्य क्षेत्र में मारणांतिक समुद्धात करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पश्चिम के चरिमांत में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायापने उत्पन्न होने योग्य होषे वह कितने समय में उत्पन्न होये ? अहो गौतम ! सन पूर्वोक्त जैसे जानना. यावत् इसलिये ऐसा कहा. पर्याप्त, अपर्याप्त मूक्ष्म व बादर यो पृथ्वीकाया के चार भेद, ऐसे ही अपकाया के चार भेद,
. प्रकाशक सजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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