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सेसेण भण्णइ जहा गैरइया ॥ एवं जाव थणिय कुमारा॥ पुढवि काइयाणं भंते ! कि किरियावादी पृच्छा? गोयमा! णो किरियावादी, अकिरियावादिवि, अण्णाणवादीवि, को वेणइयवादी ॥ एवं पुढवी काइयाणं जं अत्थि तत्थ सव्वत्थवि एयाई दो मझिल्लाइं समोसरणाई जाव अणागारोवउत्ताइ ।। एवं जाव चरिंदियाणं सव्वट्ठाणे एयाईचेव मझिलाई दो समोसरणाई सम्मत्त जाणेहिंवि एयाणिचेव मज्झिल्लगाई दो समोसरणाई ॥ पंचिंदिया तिरिक्खजोणिया जहा जीवा णवरं जं अत्थि तं भाणि.
48 पंचांग विवाह पण्पत्ति (भगवती) सत्र 428+
बोसमा शतक का पहिला उद्देशा
भाव
पक्षिक नारकी क्रियावादी नहीं है. परंतु शेष तीनों पदवाले हैं. ऐसे ही इसी क्रम से जैसे समुच्चय जीवन की वक्तव्यता कहो वैसे ही नारकी की अनाकारोपयोग पर्यंत सब वक्तव्यता कहना. परंतु जिन के जो होवे वहीं कहना. शेष कहना नहीं. ऐसे ही स्तनित कुमार पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! पृथ्वीकाया क्या क्रियावादी है पृच्छा? अहो गौतम ! क्रियावादी नहीं है अक्रियादी व अज्ञानवादी है और विनय-AT वादी नहीं है. ऐसे ही अनाकारोपयोग पर्यंत पृथ्वीकाया को जो होवे वहां बीच के दो समोसरण कहना.
चतुरेन्द्रिय पर्यंत कहना. सम्यक्त्व व ज्ञान की साथ भा उक्त बीच के दो समोसरण कहना.. तिर्यंच पंचेन्द्रिय का समुच्चय जीव जैसे कहना. परंतु जिन को जो होने वही कहना. मनुष्य का समुच्चयः |