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सूत्र
भावार्थ
45 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जहा अलेस्स ॥ सवेदगा जाव पुंगवेदगा जहा सलैस्सा, अवेद्गा जहा अलेस्सा, सकसा यी जाव लोभ कसाई जहा सलेस्सा, अक्साइ जहा अलेस्सा। सजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा, अजोगी जहा अलेस्सा || सागारबउत्ता अणागारोवउत्ता जहाँ सलेस्सा || १ || रइयाणं भंते ! किं किरिपावादी पुच्छा ? गोयमा ! किरिया वादीवि जाव वेणइय वादीवि || सेलेस्साणं भंते ! णेरइया किं किरियावादी एवंचेव, जात्र काउं लेस्सा ॥ कण्हपक्खिया किरिया विवाजिया ॥ एवं एएणं कमेणं जच्चेव जीवाणं वक्तव्या सच्चे रइयाणवि जाव अणागारोवउत्ता णवरं जं अत्थि तं भाणियन्त्रं,
अज्ञानीका कृष्ण पक्षिक जैसे कहना. आहार संज्ञोपयुक्त यावन् परिग्रह संज्ञोपयुक्त का सलेशी जैसे कहना. नो संज्ञोपयुक्तका अलेशी जैसे कहना. सवेदी यावत् नपुंक वेदीका सलेशी जैसे कहना. अवेदीका अलेशी जैसा कहना. सकपायी यावत् लोभ कषायीका सलेशी जैसे कहना. अकषायीका अलेशी जैसे कहना. सयोगी यावत् कायायोगीका सलेशी जैसे कहना. अयोगीका अलेशी जैसे कहना. साकारोपयोग व अनाकारोपयोगका सलेशी जैसे कहना ||१|| अहो भगवन् ! नारकी क्या क्रियावादी पृच्छा ! अहो गौतम! नारकी क्रियावादी भी हैं यावत विनय बादी भी हैं. अहो भगवन ! मलेशी नारकी क्या क्रियावादी हैं ऐसेदी यात्रत् कापोत लेश्या पर्यंत कहना. कृष्ण
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ●
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