________________
3
-42 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भावार्थ
जहेब अनंतरो ववण्णएहिं उद्देसो तहेव णिरवसेसो ॥ सेवं भंते २ चि ॥
बंधी सयस्स छट्ठो उद्देशा ॥ २६ ॥ ६ ॥
परंपराहारएणं भंते ! णेरइए पांव कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा ! एवं जहेव परंपरो ववण्णएहिं उद्देसो तहेब णिरवसेसो भाणियव्वो । सेवं भंते २ भंतेति ॥ बंधी सयरस सत्तमो उद्देसो ॥ २६ ॥ ७ ॥
अणंत्तरं पजत्तएणं भंते ! णेरइए पात्र कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा ! एवं जहेब अनंतवण्णएहिं उद्देसो तहब णिरवसेसं ॥ सेवं भंते २ ति ॥ बंधि
*
{ के वचन सत्य हैं यह छन्दीस बंधी शतक का छट्टा उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ २६ ॥ ६ ॥
परंपरा से आहार करने वाले नारकीने क्या पापकर्म का बंध कीया वगैरह पृच्छा, अहो गौतम ! जैसे परंपरा का उद्देशा कहा वैसे ही विशेषता रहित कहना अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यों छब्बीसवा बंधी शतक का सातवा उद्देशा संपूर्ण हुवा || २६ ॥ ७ ॥
अहो भगवन् ! अनंतर पर्याप्त नारकीने क्या पापकर्म का बंध कीया वगैरह पृच्छा ? ऐसे ही जैसे नंतरोत्पन उद्देशा कहा वैसे ही विशेषता रहित कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यों छब्बी
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
२९२०