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________________ सूत्र भावार्थ । 438+-- पंचमाङ्ग विवाह पण्णात ( भगवती ) सूत्र 438+ एवं जहेब अणतरोवत्रष्णएहिं णव दंडग संगहिओ उद्देसओ भणिओ तहेव, अनंतरो गाढएहिंचि अहीणमतिरित्तो भाणियब्वो णेरइयादीए जाव वेमाणिए । सेवं भंते २ ति ॥ बंधिसयस्स चउत्थो उद्देसो ॥ २६ ॥ ४ ॥ + + परंपरा गाढाएणं भंते ! णेरइए पावं कम्मं किं बंधी जहेव परंपरोववण्णएहिं उद्देसो सोच णिरवसेसो भाणियन्त्रो || सेवं भंते २ ति ॥ बंधिसयस्स पंचम ॥२६॥५॥ अनंतराहारएणं भंते! णेरइए पात्र कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा ! एवं अनंत उत्पन्न का कहा वैसे ही भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. दंडक सब कहना, नारकी से वैमानिक पर्यंत वैसे ही कहना. अहो यह छवीसवा शतक का चौथा उद्देशा संपूर्ण हुवा || २६ ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! परंपरावगहित नारकी ने क्या पापकर्म का बंध कीया वगैरह जैसे परंपरोत्पन्न का} उद्देशा कहा वैसे ही विशेषता रहित कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह छत्रीचा बंधी शतक का पांचवा उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ २६ ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! अनंतर आहार करने वाले नारकीने क्या पापकर्म का वैध कीया वगैरह पृच्छा ! अहो गौतम! अनंतरोत्पन्न का उद्देशा कहा वैसे ही विशेषता रहित आहार का उद्देशा जानना. अहो - भगवन्! आप ++ उन्नीसवा शतक का ४-५ उद्देशा 4028+ २९१९
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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