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43 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
वणे णेरइए पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा ! पढमवितिया भंगा, एवं खलु सम्वत्थ पढमवितिया भंगा णवरं सम्मामिच्छत्त। मणजोगो व इजोगोय ण पुग्छिजइ एवं जाव थणियकुमारा ॥ बेइंदिय तेइंदिय चउरिंदियाणं,वइजोगोणं भण्णइ, पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणंवि सम्ममिच्छत्तं ॥ओहिणाण विभंगणाणं,मण जोगो,वइजोगो एयाणि पंच गभणंति।मणुस्साणं अलेस्सा सम्मामिच्छत्त मणपज्जवणाण केवलणाण विभंगणाण जोसण्णोधउत्ते अवेदग अकसायी, मणजोगी वइजोगी अजोगी, एयाणि एकारसप
याणि ण भष्णति ॥ वाममंतर जोइसिय वैमाणिया जहा जेरइयाणं तहेव तिष्णि वनैरह पृच्छा? अहो मौतम ! किलनेकन बंथ कीया प्रथम दूसरा भांगा कहना. ओ भगवन् ! सलशी अनंतरोपनक नारकीने पापकर्म का बंध कीया? अहो गौतम ! प्रथम दूसरा भांगा कहना. ऐसे ही सर्वत्र पहिला दूमरा भांगा कहना. परंतु सम्यक् मिध्यात्त्र, मनयोगी व वचन योगी की पृच्छा न करे. ऐसे ही सनित कुमार पर्यंत कहना. इन्द्रिय, तेइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय में वचन योग कहना नहीं. तिर्यच पंचेन्द्रिय को सम्यक् मिथ्यात. अवाधेि ज्ञान, विभंग ज्ञान, मनोग घ वचन योग कहना नहीं. मनुष्य में अलंशी, सममिध्यादृष्टि, मनःपर्यव ज्ञान, केवल ज्ञान, विभंग बान, नोसनोपयुक्त, अवेदक, अपापी, मनयोगी,
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसाद
धावा
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