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भावार्थ ।
पंचांग विवाह पति ( मगवती ) सूत्र 40
णो सोवउत्ते, वितिय विहुणो जहेत्र मणपज्जवणाणे || अवेदए अकसाइय ततिय चउत्थो जहेब सम्मामिच्छत्ते ॥ अजोगिम्मि चारमो सेसेसु पदेसो चत्तारि भंगा, जाव अणगारोवउत्ते || रइयाणं भंते! आउयकम्मं किं बंधी पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइए चत्तारि भंगा, एवं सव्वत्थवि, णेरइयाणं चत्तारि भंगा; णवरं कण्हलेस्सेसु, कहपक्खि पढमततिया भंगा, सम्मामिच्छत्ते ततिय चउत् ॥ असुरकुमारे एवं वरं कण्हलेस्से सुवि चचारि भंगा भाणियव्त्रा || सेसं जहा णेरइयाणं, एवं कितनेकने बंध कीया, बंध नहीं करते हैं व बंध करेंगे, कितनेकने बंध कीया, बंध नहीं करते हैं व बंध नहीं करेंगे. केवलज्ञानी में एक अन्तिम भांगा. ऐसेही नोसंज्ञोपयुक्त में दूसरा भांगा छोडकर तीनभांगे पति हैं. { अवेदी व अकषायी में मममिध्यादृष्टि जैसे तीसरा व चौथा और अयोगी में एक अन्तिम भांगा शेष सत्र पंद चार भांगे अनाकारोपयुक्त तक करना. अहो भगवन् ! नारकीने क्या आयुष्य कर्म का बंध कीया { वगैरह पृच्छा ? असे गौतम ! चार भांगे कहना. ऐसे ही नारकी में सर्वत्र चार भांगे कहना. परंतु कृष्ण लेशी व कृष्ण पक्षिक में पहिला तीसरा और सम्यकदृष्टी मिथ्यात्त्रदृष्टी में तीसरा चौथा असुर कुमार में ऐसेडी
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परंतु कृष्ण लेशी अमुरकुमार में चार भांगे ऐसे ही स्तनिक कुमार पर्यंत कहना. पृथ्वी काय में सर्वत्र चार भांगे कहना.
4380 छत्रीसवा शतक का पहिला उद्देशा
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