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बंधी चउभंगो ॥ सलेस्से जाव सुक्कलेस्से चत्तारि भंगा ॥ अलेस्से चरिमो भंगो ॥ कण्ह पक्खिएणं पुच्छा ? गोयमा ! अत्येइगइए बंधी बंधइ बंधिस्सइ; अत्थेगइए बंधी णबंधइ बंधिस्सइ, ॥ सक्कपक्खिए सम्मदिट्ठी मिच्छाट्ठिी चत्तारि भंगा ॥ सम्मामिच्छादिट्ठी पुच्छा ? गोयमा ! अत्यगइए बंधी णवंधइ बंधिस्सइ, अत्येगइए बंधी णबंधइ गबंधिरप्तइ ॥ णाणी जाव ओहिणाणी चत्तारि भंगा । मणपजवणाणी पुच्छा ? गोयमा! अत्थेगइए बंधई बंधई बंधिस्सइ; अत्थेगइए बंधी णबंधइ बंधिस्सइ,
अत्थेगइए बंधी णबंधइ णबंधिस्सइ ॥ केवलणाणी चरिभो भंगो॥ एवं एएणं कमेणं कर्म का बंधकीया, बंध करते हैं व बंध करेंगे? अहोगौतमवंत्र कीया वगैरह चार भांगेकहना. मलेशी यावत् शुक्ल लेशी में चारभांग, अलेशी में एक अन्तिम भांगा. कृष्ण पक्षिक की पृच्छा अहो गौतम! कितनेकने बंधकीपा बंध करते हैं व बंध करेंगे, और कितनेकने बंध कीया बंध नहीं करते हैं व बंध करेंगे. शुक्लपक्षी, समदृष्टि व मिथ्यादृष्टि में चार भांगे, सममिथ्यादृष्टि की पृच्छा ? कितनेकने बंधकीया, कितनेकाहीं बांधते हैं व
कितनेक बांधेगे और कितनेकने बंध किया, बंध नहीं करते हैं व बंध नहीं करेंगे. सज्ञानी यारत् अवधिज्ञान। 12 में चार भागे, मनःपर्यव ज्ञानी की पृच्छा ? अहो गौतम ! कितनेकने बंध कीया, बंध करते हैं व बंध करेंगे।
२.१ अनुवादक-वालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
* प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *