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________________ चांग विवाहपण्णचि (भगवती) मत्र 48 अवसेसं तंचव जाव वेमाणिए ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ पणवीसहम सयस्स गबमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २५ ॥ ९ ॥ अभवमिडिय णेरइयाणं भंते ! कहं उववज्जति ? गोयमा ! से जहाणामए पवए पवएमाणे अवसेसं तंचव एवं जाव वेमाणिया ॥ सेवं भंते ! २ ति ॥ पणवीसहम सयस्स दसमो उद्देशो सम्मत्तो ॥ २५ १० ॥ सम्मदिट्ठी जेरइयाणं भंते कह उववज्जति ? गोयमा! से जहा णामए पवए पवमाणे अवसेसं तंत्र, एवं एगिदियवजं जाव वेमाणिए ॥ सेवं भंते २ त्ति ॥ पणवीसइम वैसे ही यहां सब कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सस हैं. यह पच्चीसवा शतक का नववा उद्देशा मंपूर्ण हुवा ॥ २५ ॥ ९ ॥ __अहो भगवन् ! अभवसिद्धिक नारकी कैसे उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जैसे आठवे शतक में कहा है वैसे ही यहां वैमानिक पर्यन कहना. अहो भगवन् ! आपक वचन सत्य हैं. यह पञ्चीसवा शतक का दशवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २५ ॥१०॥ अहो भगवन ! समदृष्टि नारकी कैसे उत्पन्न होने ? अहां गौतम! आठवे शतक से म ना परंतु विशेषता यह कि इस में एकेन्द्रिय के पांच दंडक कहना नहीं क्यों कि वहां ममदृष्टि नहीं है. अहो पचीसवा शतक का ९-१०.११. उद्देशे 4gh .. |
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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