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4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
विवजिए, जहा इववाइए जाव लूहाहार ॥ सेतं रसपश्चिाओ, ॥ ५॥से कि ते कायकिलेसे ? कायाकिलेसे अणेगविहे ५० तं. ठाणाईए, उक्कुडया. सणिए जहा उपघाइए जाव सक्ष्वगाय पडिकम्मविप्पामुको ॥ सत्तं कायकिछेसे ॥६॥ से किंतं पडिसलीनता ? पडिसंहीनता घम्विहा पुण्णात्ता, तंजहा ईदिय पदिसलीनता, कसायपडिसलीनता, जोगपडिसलीनता, विवत्तसयणासणसेवजया ॥ से किंतं इंदिया पडिसंलीमता ? इंदिय पडिसलीनता पंचविहा पणत्ता, तंजहा साइंदिय विसयप्पयार गिरोहोवा, सोइंदिय विसयप्पत्तेसुवा अत्येसु रागदोसविणिग्गहो; चक्खिदिय विसय भेद कहै हैं? निविंगर, गणित रस का साग करनेवाला, वगैरह जैसे उबाइ में यावत् रूक्ष आहार करनेवाला का यह रस परित्याग तप हुया ||काया लश नप किन कहते हैं? काया लेश के अनेक भेद को हैं? स्थानासन,
उत्कटासन वगैरह उवाइ भने यावत् सब शरीर की विभूषा रहिन. यह कायाक्लेश प हुवा ॥ ६ ॥ प्रति संटीनता किसे कहते हैं ? प्रतिसलीता के चार भंद कहे हैं। इन्द्रिय प्रतिसंलीनता, २ कषाय प्रतिसेलीनता, ३ वोनप्रतिसंहीनना और ४ निर्विकशयनासन सेवना.इन्द्रिय प्रतिसंडीनता किसे कहते हैं? इन्द्रिय प्रतिसंहीनता के पांच भेद कहे है. श्रोनेन्द्रिय के विषय का निरोध करना. क्वाचितू श्रोमेन्द्रिय विषय की प्राप्ति
.प्रशा-राजावडाहर लालामुकदक्सहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ
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