________________
48
२०६७
3 वेदेइ,चत्तारिवेदेमाणे वेयणिजाओ आउणामगोपाओ चत्तारि कम्मपगडीओ वेदे॥२२॥ १ सामाइय संजएणं भंते ! कइकम्मपगडीओ उदीरेइ ? गोयमा ! सत्तविह जहा
वउसे एवं जाव परिहारविमुद्धिए । सुहुमसंपराए पुच्छा? गोयमा! छबिहउदीरएवा, .
पंचविहउदोरएवा, उदीरमाणे आउवेयगिजबजाओ उम्मपगडीओ उदीरेइ, पंच । उदीरमाणे आउवेयणिजमोहणिजबजाओ पंचकम्मपगडीओ उदीरेइ, अहक्खायसंजए }
पुच्छा ? गोयमा ! पंचविह उदीरएवा, अणुदीरएवा, पंचउदीरमाणे आउय सेसं जहा भावार्थ
ख्यात की पृच्छा, अहो गौतम ! सात अथवा चार वेदे. सात वेदे तो मोहनीय कर्म छोडकर बेदे और चार बेदे तो वेदनीय, आयुष्य, नाप और गोत्र यो चार ॥ २२ ॥ अहो भगवन् ! सामायिक संयमवाला कितनी कर्म प्रकृतियों की उदारणा करे ! अहो गौतम ! मात कर्म की उदारणा करे यों, बकुत्र जैसे कहना. ऐसे ही परिहार विशुद्ध पर्यंत कहना. सूक्ष्म संपराय की पृच्छा, अहो मौतम ! छ.अथवा पाच । कर्म की उदीरणा करे. छ कर्म उदीरते आयुष्य और वेदनीय और पांच उदीरते आयु वंदनीय मोहनीय कर्म छोडकर पांच कर्म प्रकृतियों उदेरे यथाख्यान की पृच्छा, अहो गौतम! पाँच अथवा दो कर्म उदीरे अथवा उदारणा भी करे नहीं. पांच की उदारणा करते आयुष्य वगैरा निर्ग्रन्थ जैसे कहना. ॥१५॥
ह पण्णति (भगवती)
पचीसमा सनक का सातवा