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जहा पुलाए, एवं जाव अहक्खाए, णवर सुहुमसंपराए सागारोवउत्ते होना, जो अणागारोवउचे होजा ॥ १७ ॥ सामाइय संजएणं भंते ! किं सकसायी होजा अकसायी होजा ? गोयमा ! सकसायी होजा णो अकसायी होजा, जहा २८ कसायकुसीले एवं छेदोवढावणिरवि ॥ परिहारविमुद्धिए जहा पुलाए, सुहुमसंपराय संजए पुच्छा ? गोयमा ! सकसायी होजा णो अकसायी होजा जइ सकसायी होजा सेणं भंते ! कइसु कसाएसु होजा ? गोयमा ! एगम्मि संजलणलाभ होला।
अहक्खाय संजए जहा णियंठे ॥ १८ ॥ सामाइय संजएणं भंते ! किं रालेसे भावार्थ गौतम ! साकारोपयुक्त वगैरह पुलाक जैसे कहना. यो यथाख्यात चारित्र पर्यंत कहना. परंतु मूक्ष्म
E संपराय साकारोपयुक्त होवे अनाकारोपयुक्त होवे नहीं ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! सामायिक संयमी
क्या सकषायी या अकषायी होवे ? अहो गौतम ! सकपायी होवे परंतु अकषायी होवे नहीं, में कषाय .. कुशील जैसे कहना. ऐसे ही छदोपस्थापनीय का भी कहना. परिहार पिशुद्ध का पुलाक, ये कहना
सूक्ष्मसंपराय की पृच्छा, अहो गौतम ! सकपायी होवे परंतु अकषायी होने नहीं. यदि, सकवायी होवे . 10 तो कितनी कपायों में होवे ? अहो गौतम ! एक संजल के लोभ में होरे. ययाख्यात चारित्र का निर्वथा ।
पंचांग विवाह पणत्ति (भगवती) सूत्र +8+
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438 पीसा शक्कका साना उद्देशाने