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सिणाए होजा एवं सुहमसंपराएवि अहक्खाय संजए पुच्छा, गोयमा! णो पुलाए होजा जाव णो कसायकुसीले होज्जा णियंठेवा होजा सिणाए वा होजा, ॥ ५ ॥ सामाइयसंजएणं भंते! किं पडिसेवए होज्जा अपडिसेवए होजा? गोयमा ! पडिसेवए वा होज्जा, अपडिसेवए वा होजा । जइ पडिसेवए होजा किं मूलगुण पडिसेवए होजा, सेसं जहा पुलागस्स ॥ जहा सामाइय संजए एवं छेदोवट्ठावणिएवि ॥ परि. हारविसुद्धिय संजए पुच्छा ? गोयमा ! णो पडिसेवए होज्जा अपडिसेवए होजा एवं
जाव अहक्खाय संजए ॥ ६ ॥ सामाइय संजएणं भंते ! कइसु णाणेसु होजा? विशुद्ध संयमी की पृच्छा, पुलाक, बकुश, प्रतिसेवना कुशील, निर्ग्रन्थ व स्नातक में होवे नहीं परंतु कषाय कुशील में हावे. यों सूक्ष्म संपराय का जानना. यथाख्यात की पृच्छा, अहो गौतम ! पुलाक यावत् कषायकुशील में होवे नहीं परंतु निर्ग्रन्थ अथवा स्नातक में होवे ॥५॥ प्रतिसेवना द्वार. अहो भावन सामायिक संयम क्या प्रतिसेवक को होवे या अप्रतिसेवक को होवे ? अहो गौतम ! प्रतिसेवक अथा
अप्रतिसेवक को होवे. यादि प्रविसेवक को होवे तो क्या मूलगुण प्रतिसेवक को होवे शेष सब पुलाक जैसे Laxकहना. जैसे सामायिक चारित्र का कहा वैसे ही छंदोपस्थापनीय का जानना. परिहार विशुद्ध संयम की
पृच्छा, अहो गौतम ! प्रतिसेवक अथवा अमतिसेवक को होवे. यों यथाख्यात पर्यंत कहना ॥ ॥ज्ञान
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
पच्चीसना शनक का सातवा उद्दशा 48
भावार्थ
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