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श्री अमोलक ऋषिजी अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि
संजए सामाइय संजएणं भंते ! किं जिणकप्पे होजा थेरकप्प होजा कप्पातीते होजा? गोयमा ! जिणकप्पेवा होज्जा जहा कसायकुसीले तहेव गिरवसेसं छेदो वट्ठावणिय परिहारविसुद्धिओय, जहा वउसे सेसं जहा णियंठे ॥ ४ ॥ सामाइय संजएणं भंते ! किं पुलाए होज्जा, वउसे जाव सिणाए होज्जा ? गोयमा ! पुलाएवा होजा वउसे जाव कसाए वा होजा, णो णियंठे होजा णो सिणाए होजा ॥ एवं छदोवढावणियएवि । परिहारविसुद्धियसंजएणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! णो पुलाए
णो वउसे, णो पडिसेवणाकुसीले होजा, कसायकुसील होजा, जो णियंठे होजा, जो यिक चारित्र जैसे कहना. अहो भगवन् ! सामायिक संयमी क्या जिन कल्प में होवे, स्थविर कल्प में हावे या कल्पातीत में होवे ? अहो गौतम ! जिन कल्प में होवे वगैरह जैसे कपाय कुशील का कहा वैसे ही विशेषता रहित कहना. छदोपस्थापनीय व परिहार विशुद्ध का बकुश जैने और मूक्ष्म संपराय व यथाख्यात का निर्ग्रन्थ जैसे कहना ॥ ४ ॥ अब निर्ग्रन्थद्वार. अहो भगवन् ! सामायिक संयमी क्या पुलाक को होघे, वकुश को हावे यावत् स्नातक को होवे ? अहो गौतम : पुलाक, बकुश यावत् कषाय ने
ल को होवे परंतु निग्रन्थ व स्नातक में होने नहीं. ऐसे ही छदोपस्थापनीय का कहना. परिहार
• प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ