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भावार्थ
42 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
कोडिसयपुहतं, उक्कोसेणत्रि कोडिसयपुहत्तं ॥ एवं पडिलेवणाकुसीले वि ॥ कसाय कुसीलाणं पुच्छा ? गोयमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अस्थि सिय णत्थि ॥ जइ अत्थि जहणेणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा, उक्कोसेणं कोडिसहसपुहत्तं ॥ पुव्वपडिवण्णए पडुच्च जहणेणं कोडिस हस्तपुहत्तं उक्कोसे कोडसहसपुत्तं ॥ णियंठाणं पुच्छा ? गोयमा ! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अत्थि सिय णत्थि, जइ अत्थि जहण्णेणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा, उक्कोसेणं वात्रटुं सत्तं अट्ठसय खवगाणं, चउपण्णं उवसमगाणं, पव्वपडिवण्णए पडुच्च सिय अत्थि सिय णत्थि, जइ अत्थि जहणेणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा उक्कोसेण सत्तपुहत्तं ॥ सिणाताणं पुच्छा ? गोयमा ! विजमाणए पडुच्च सिय अत्थि सिय णत्थि, जइ अत्थि जहणेणं एक्कोवा दोवा की पृच्छा, अहो गौतम ! प्रतिपद्यमान आश्री स्यात् होवे स्यात् न क्षेत्रे यदि होत्रे तो जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट प्रत्येक सहस्र क्रोड, पूर्वप्रतिपन्न आश्री जघन्य उत्कृष्ट प्रत्येक सहस्र क्रोड, निर्ग्रन्थ की पृच्छा { अहो गौतम ! स्यात् होवे स्यात् न होवे यदि होवे तो जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट एकसो बासठ [ १६२ जिस में ५४ उपशमवाले और १०८ क्षयवाले. पूर्व प्रतिपन्न आश्री स्य त् होवे स्यात् न होवे यदि होवे तो } जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट प्रत्येक सो. स्नातककी पृच्छा, अहो गौतम ! प्रतिपद्य आश्री स्यात् होवे स्यात्
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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