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________________ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + मासंजमं वा उपसंपजइ ॥ णियंठेणं पुच्छा ? गोयमा ! णियंठत्तं जहति कसाय कुन्तीलं वा सिणातं वा अस्संजमं वा उवसंपज्जइ ॥ सिणाएणं पुच्छा, गोयमा ! सिणायत्तं जहति, सिद्धगति उवसंपज्जइ ॥ २५ ॥पुलाएणं भंते ! किं सण्णो वउत्ते होजा णो सण्णोवउत्ते होजा ? गोयमा ! णो सण्णोवउत्ते होज्जा ॥ वउसेणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! सण्णोवउत्ते होजा णो सण्णोवउत्ते होजा ॥ एवं पडिसेवणा कुसीलेवि, एवं कसायकुसीलेवि ॥ णियंठे सिणाए जहा पुलाए ॥ २६ ॥ पुलाएणं भंते ! किं आहारए होजा अणाहारए होजा ? गोयमा ! आहारए होजा णो अणाऔर पुलाक, बकुश, प्रतिसेवना कुशील, निर्ग्रन्थ, असंजम व संजमासजम अंगीकार करता है, निर्जन्य की पृच्छा, अहो गौतम ! निर्ग्रन्थपना छोडता है और कषाय कुशील, स्नातक प असंजम अंगीकार करता है." स्नातक की पृच्छा, स्नातकपना छोडता है और सिद्धगाते में जाता है ॥ २५ ॥ अहो भगवन् ! पुलाकी क्या आहारादि संडा युक्त है या नोसंज्ञा युक्त है ? अहो गौतम ! नोसंज्ञा युक्त है, बकुश की पृच्छा, संज्ञा युक्त व नो संज्ञा युक्त ऐसे ही प्रतिसेवना कुशील व कवाय कुशील का जानना. निग्रंथ ने स्नातक का पुलाक जैसे कहना ॥ २६ ॥ अहो भगवन् ! पुलाक क्या आहारक है या अनाहारक है। *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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