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बालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी
सवेयए पुच्छा ? गोयमा ! सवेयएवा होज्जा अवेयएवा होज्जा ॥ जइ अवेदएहोजा किं उवसंतवेदए होजा, खीणवेदए होजा ? गोयमा ! उवसंतवेदएवा होजा,खीणवेदएवा होजा ॥ जइ सवेदए होज्जा किं इत्थीवेदए होजा पुच्छा, गोयमा ! तिसुवि जहा वउसे ॥ णियंठेणं भंते ! किं सवेदए पुच्छा ? गोयमा ! णो सवेदए होजा, अवेदए होज्जा ॥ जइ अवेदएहोजा किं उवसंत पुच्छा ? गोयमा ! उवसंतवेदएवा होजा, खीणवेदएवा होज्जा ॥ सिणाएणं भंते ! किं सवेयए होज्जा ? जहा णियंठे तहा सिणा
एवि; णवरं णो उवसंतवेयए होजा, खीणवेयए होजा ॥ ३ ॥ पुलाएणं भंते ! का जानना. कषाय कुशील की पृच्छा, अहो गौतम ! सवेदी अवेदी दोनों होते. यदि अवेदी होवे तो वया उपशांत वेदी या क्षीण वेदी होवे ? अहो गौतम ! उपशम वेदी व क्षीण वेदी दोनों होवे यदि सवेदी होवे तो स्त्री वेदी, पुरुष वेदी व पुरुष नपुंसक वेदी तीनों होवे. अहो भगवन् ! निर्ग्रन्थ क्या मवेदी या अवेदी ? अहा गौतम ! निर्ग्रन्थ सवेदी नहीं परंतु अवेदी होवे यदि अवेदी होवे तो क्या उपशांतवेदी वगैरह पृच्छा, अहो गौतम ! उपशांत वेदी अथवा क्षीण वेदी होवे. स्नातक का निर्ग्रन्थ जैसे कहना परंतु यहांपर क्षीण वेदी होवे ॥ ३ ॥ अब रागद्वार कहते हैं. अहो भगवन् ! पुलाक निर्ग्रन्थ क्या सराम है या
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ