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________________ - णिरेया कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सम्बद्धं ॥ दुपदेसियाणं भंते ! खंधा देसेया है। कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सव्वद्धं ॥ सव्या कालआ केवचिरं होइ ? सम्वद्धं, णिरेया केयचि रंहोइ ? सव्वदं । एवं जाव अणंतपदेसिया ॥ ४२ ॥ २७७ परमाणु पोग्गलस्सण . भंते ! सव्वेयस्स कालओ केवचिरं अंतर होइ ? गोयमा ! सट्टाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं असंखेजंकालं । परटाणंतर पडुच्च जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं एवंचेव ॥ जिरेयस्स केवइ सट्टाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखेजइभागं परट्ठाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक भावाथ कितना काल तक रहे ? अहो गौतम ! सब काल. अहो भगवन् ! द्विपदेशिक स्कंध देश कम्प कितना hor काल तक रहे ? अहो गौतम ! सब काल. सर्व कंपन कितना काल तक रहे ? अहो गौतम ! सब काल स्थिर कितना काल तक रहे ? अहो गौतम ! सब काल. ऐसे ही अनंत प्रदेशिक स्कंध पर्यंत कहना ॥४२॥ A अहो भगवन् ! सर्व कंपन परमाणु पुद्गल का कितना अंतर कहा ? अहो गौतम ! स्वस्थानांतर आश्री जघन्य एक समय उस्कृष्ट असंख्यात काल. परस्थानांतर आश्री एक समय उत्कृष्ट ऐसे ही कहना. स्थिर का स्वस्थानांतर आश्री जघन्य एक समय उत्कृष्ट आवंलिका का असंख्यात भाग. परस्थानांतर आश्री । पंचमाङ्ग विवाह पप्णत्ति ( भगवति ) सूत्र पञ्चीसवा शतक का चौथा उद्देशा 498 330
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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