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असंखेजगुणा, ॥ ३९ ॥ परमाणुपोग्गलेणं भंते! कि देसेए सोए णिरेए? गोयमा! णो देसेए सिय सव्वेए सिय णिरेए ॥ दुपदेसिएणं भंते ! खंधे पुच्छा ? गोयमा ! सिय देसेए सिय सव्वेए, सिय णिरेए ॥ एवं अणंतपदेसिए ॥ परमाणुपोग्गलाणं भंते ! किं देसेया सव्वेया णिरेया? गोयमा ! णो देसेया सव्वेयावि णिरेयावि ॥ दुपदेसियाणं भंते ! खंधा पुच्छा? गोयमा! देसेयावि सव्वेयावि णिरेयावि एवं जाव अणंतपदेसिया ॥ ४० ॥ परमाणुपोग्गलेणं भंते ! सव्वेए कालओ केवंचिरंहोइ ? गोयमा ! जहण्णेणं
पंजमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
१० पच्चीसवां शतक का चौथा उद्देशा 4220
भावार्थ
॥ ३१ ॥ अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल क्या देश से कंपन वाला, सर्व से कंपन वाला या स्थिर है !
अहो गौतम ! देश से कंपन वाला नहीं है परंतु स्यान सर्व से कंपन वाला व स्यात स्थिर है, द्विपदेशिक ys स्कंध की पृच्छा, अहो गौतम ! स्यात देश से कंपन वाला, स्यात सर्व से वाला कपंन व स्यात
स्थिर है ऐसे ही अनंत प्रदेशिक स्कंध पर्यंत कहना..हो भगवन् ! बहुत परमाणु पुद्गल क्या देश से कंपन।
वाले हैं, सर्व से कंपने वाले हैं या स्थिर हैं ? अहो गौतम ! देश से. कंपन वाले नहीं हैं परंतु सर्व से of कंपन वाले व स्थिर हैं. द्विपदेशिक स्कंध की पृच्छा, देश से कंपन वाले, सर्व से कंपन वाले व स्थिर भी +हैं. ऐसे ही अनंत प्रदेशिक स्कंध पर्यंत कहना. ॥ ४० ॥ अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल सर्व से कंपन पाला .