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________________ सूत्र ०७ भावार्थ 48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी सार समावण्णा । तत्थणं जे ते असंसार समावण्णगा तेणं सिद्धा सिद्धाणं दुविहा पण्णत्ता तंजहा अनंतर सिद्धाय परंपरसिद्धाय तत्थणं जे ते परंपर सिद्धा तेणं णिरेया तत्थणं जे ते अनंतर सिद्धा तेणं सेया ॥ तेणं भंते! कि देसेया सव्वेया ? गोयमा ! णो देसेया सव्वेया ॥ तत्थणं जे ते संसारसमावण्णगा ते दुबिहा पण्णत्ता, तंजहा सेलेसी पडिवण्णगाय असेलेसीपडिवण्णगाय ॥ तत्थणं जेते सेलेसी पडिवण्णगा तेणं णिरेया || तत्थणं जेते असेलेसी पडिवण्णगा तेणं सेया ॥ तेणं भंते ! किं देतेया सव्वेया ? गोयमा ! देतेयावि सव्वेयावि ॥ से तेणद्वेणं जाव कहे हैं ? संसार समापन्नक और २ संसारसमापन्नक नहीं. उस में असंसार समावन्नक हैं वे सिद्ध हैं. सिद्ध { के दो भेद अनंतर सिद्ध व परंपरा सिद्ध. उन में जो परंपरा सिद्ध हैं वे स्थिर हैं और जो अनंतर सिद्ध {हैं वे कंपन स्वभाव वाले हैं. अहो भगवन् ! वे क्या देश कंपन स्वभाव वाले हैं या सर्व कंपन स्वभाव वाले हैं ?? {अहो गौतम! देश कंपन स्वभाव वाले नहीं हैं परंतु सर्व कंपन स्वभाववाले हैं. जो संसार समापनक जीव हैं उनके दो भेद { शैलेशी प्रतिपन्न व अशैलेशी प्रतिपन्न. उन में जो शैलेंशी प्रतिपन्न हैं वे स्थिर हैं और अशैलेशी प्रतिपा है। वे कंपन स्वभाववाले हैं. अहो भगवन् ! वे क्या देश से कंपनेवाले या सर्व से कंपनेवाले हैं ? अहो गौतम १ * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * २७४८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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