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सूत्र
भावार्थ |
अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
Paras रियावाससय सहरसा पण्णत्ता, एवं जाव पढमसए पंचमुद्देसए जाव अणुत्तर विमाणत्ति ॥ ४१ ॥ कइविणं भंते ! गणिविडएणं पण्णत्ते ? गोयमा ! दुबालसंगे गणिपिडए पण्णत्ते, तंजहा आयारो जात्र दिट्टिवाओ ॥ ४२ ॥ से किंतं आयारो ? आयारेण समणाणं णिग्गंथाणं आयार; गोयमा ! एवं अंगपरूवणा भाणि - यव्वा, जहा गंदीए. जाव सुतत्थोखलु पढमो, बिओ निज्जुत्ति मीसओ भणिओ; तइओ निरवसेसो, एसविहो होइ अणुओगो ॥ ४२ ॥ एएसिणं भंते ! णेरइयाणं
प्रभा में कितने नरकावास कहे ? अहो गौतम ! प्रथम शतक के पांचवे उद्देश जैसे अनुत्तर विमान पर्यंत [ कहना. ॥ ४१ ॥ अहो भगवन् ! कितने गणिपिटक कहे हैं ? अहो गौतम ! बारह गणिपिटक कहे जिन के {के नाम आचार यावत् दृष्टिवाद ॥ ४२ ॥ अहो भगवन् ! आचार किस को कहते हैं ? अहो गौतम ! जिन में श्रमण निग्रन्थो का आचार गोचर होवे इत्यादि द्वादशांग में जो कुच्छ होवे उस का संक्षिप्त में कथन नंदीजी मूल सूत्र में कहा है वैसे ही यहां पर भी जानना यावत् सूत्र अर्थ अनुयोग निश्चय से होवे यह प्राथम अनुयोग, प्राथमिक विनय में मतिमोहमता होना यह दूसरा अनुयोग, स्पर्शिक नियुक्ति निश्चय अर्थ करना जिनादिके यह तीसरा अनुयोग, सूत्र अर्थ दोनों प्रकार नियुक्ति वह निरवशेष यह अनंतरोक्त { प्रकार तीन लक्षण होवे वह विधिविधान अनुयोग ॥ ४२ ॥ आगम में गति आदिकी प्ररूपण' है इसलिये
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी
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