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सूत्र
भावार्थ
488+ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
मोग्गला भंते! किं अणुसेही गती पत्र चइ विसेढी गती पत्रतइ ? गोयमा अणुसेद गती पवत्त णो विसेहि गती पवत्तइ ॥ दुपदेसियाणं भंते ! खंधाणं असेढी गती पत, विसेदी गती पवत्तइ ? एवं चेत्र; एवं जाव अणतपदे सियाणं धाणं ॥ ३९ ॥ रइयाणं भंते ! किं अणुसेढिगती पवत्तइ, विसेदि गती पवन्तइ ? एवं चेत्र; एवं जाव वेमाणियाणं ॥ ४० ॥ इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए ( दिशा में वक्र ४ एकदिशा खा ५ दोनों दिशा खा ६ चक्रवाल व ७ अर्ध चक्रवाल ॥ ३८ ॥ अहो भगवन् ! परमाणु पुगल क्या अनुश्रेणिगति से प्रवर्ते अथवा विश्रेणीगति-विपरीतगति से भव ? अहो गौतम ! अनुश्रेणीगति से प्रवर्ते परंतु विश्रेणीगति से प्रवर्ते नहीं. अहो भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कंध क्या अनुश्रेणिगति से प्रत्रर्ते या विश्रेणि गति से प्रवर्ते ! अहो गौतम ! पूर्वोक्त जैसे कहना. ऐसे ही अत प्रदेशिक स्कंध पर्यंत कहना ॥ ३९ ॥ अहो भगवन् ! नारकी क्या अनुश्रेणीगति से प्रवर्ते या वेश्रेणीगति से प्रव अहो गौतम | उक्त प्रकार ही कहना ऐसे ही वैमानिक पर्यंत कहना. ॥ ४० ॥ अहो भगवन् ! इस रस्त
* ऋजु आयात से जीव ऊर्ध्व अधोलोक में ऋजुपने जावे, एकदिशा वक्र से दिशा वक्र से दो वक्र करे एक खडक से जीव वाममार्ग से प्रवेश करके वाम पार्श्व में
जीव सीधा जाकर बक होवे दो उत्पन्न होवे, दो खुडक से बाम
बाजु से प्रवेश कर दक्षिण बाजुमें उत्पन्न होवे, चक्रवाल से जीव वर्तुलाकार में परिभ्रमण करे और अर्धचक्रवाल से आधा चक्र से परिभ्रमण करे.
११ पश्चीमत्रा शक का तीसरा उद्देशा 49
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