________________
सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
आहारगमीसा सरीरकायजोए, कम्मासरीरकायजोए ॥ ५ ॥ एयरसणं भंते ! पण्णरस विहस्स जहण्णुक्कोंसगस्स कयरे कयरे जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे कम्मग सरीरस्स जहण्णए जोए || १ || ओरालिय मीसगस्स जहण्णए जोए असंखेगुणे ॥ २ ॥ उत्रियमीसगस्स जहण्णए जोग असंखेज्जगुणे ॥ ३ ॥ ओरालिय सरीरस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ॥ ४ ॥ वेउन्त्रिय सरीरस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ॥ ५ ॥ कम्मग सरीरस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे ॥ ६ ॥ आहारगर्मागरस जहणएजोए असंखेज्जगुणे ॥ ७ ॥ आहारगमीसगस्स उक्कोसए जोए { आहारक शरीर काया योग १४ आहारक मीश्र शरीर काया योग और १५ कार्माण शरीर काया योग॥५॥ { अहो भगवन् ! इन पन्नरह योग के जघन्य उत्कृष्ट में कौन किस से अल्प बहुत यावत् विशेषाधिक है ?? अहो गौतम ! सब से थोडा कार्माण शरीर का जघन्य जोग, इस से उदारिक मीश्र का जघन्य जोग असंख्यात गुना, इस से वैक्रेय मीश्र का जघन्य जोग असंख्यात गुना, इस से उदारिक शरीर का जघन्य जाग असंख्यात गुना, इस से वैक्रेय शरीर का जघन्य जोग असंख्यात, गुना इस से कार्माण शरीर का उत्कृष्ट जोग असंख्यात गुना, इस से आहारक मीश्र का जघन्य जोग असंख्यात गुना इस से आहारक मीश्र का
काशक राजीबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी *
२६९८