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________________ *.38 १६२७ मन्माहएवा ; से तेण?णं जाव सिय समजोगी सिय विसमजोगी ॥ एवं जाव वेमाणिया ॥ ४ ॥ कइविहेणं भंते ! जोए पण्णत्ते ? गोयमा ! पण्णर सविहे जोए पण्णत्ते तंजहा-सच्चमण जोए, मोसमण जोए, सच्चामोसमण जोए असच्चामोसमण जोए; सच्चवइ जोए, मोसवइ जोए, सच्चामोसवइ जोए, अस• चामोसवइ जोए; ओरालिय सरीरकाय जोए, ओरालियमांसा सरीर काय जोए, वेउब्वियसरीर कायजोए, वेउव्वियमीसा सरीरकायजोए, आहारगसरीरकायजोए, असंख्यात भाग हीन, संख्यात भाग हीन, संख्यात गुण हीन या असंख्यात गुण हीन अथवा असं-12 लख्यात भाग अधिक संख्यात भाग अधिक, संख्यान गुण अधिक या असंख्यातगुन अधिक होबे. इस से ऐसा कहा गया है यावत् स्यात् समयोगी स्यात् विषम योगी. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत कहना ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! जोग के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! जोग के पन्नरह भेद कहे हैं. जिन के नाम-१ सत्य मनयोग, २ मृषा मन योग ३ सत्य मृषा मन योग, ४ व्यवहार मन योग ५ सत्य वचन योग, ६ मृषा वचन योग ७ सत्य मृषा वचन योग ८ व्यवहार वचन योग ९ उदारिक शरीर काययोग 1 ११.० उदारिक मीश्र शरीर काया योग ११ वैक्रेय शरीर काया योग १२ वैक्रेय मीश्र शरीरकाया योग१३} " र पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र tata पच्चीसबा शतक का पहिला उद्देशा88-832
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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