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________________ में ८७ चमांगः विवाहपण्णत्ति ( भगवती) सूत्र उत्रवाओ जहा सहस्सारे देवाणं णवर तिरिक्खजोणिया खोडेयव्वा जाव पजत्त , संखेजवासाउयसण्णिमणुस्साणं भंते ! जे भविए आणयदेवेमु उववाजित्तए ॥ मणुस्साणं वत्तव्वया जहेव सहस्सारेसु उववज्जमाणाणं णवरं तिणि संघयणाणि, सेसं तहेव अणुबंधो भवादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं सत्तभवम्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठारस सागरोवमाइं दोहिवास पुहुत्तेहिं अन्भहियाई, उक्कोसेणं सत्तावण्णं सागरोवमाई चउहि पुनकोडीहिं अब्भहियाई एवइयं ॥ एवं सेसावि अट्ठगमगा, भाणियन्वा णवरं द्वितिं संवेहंच जाणेज्जा ॥ सेसं तहेव एवं जाव अच्चुयदेवा, णवरं ठितिं. ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! आणत देवलोक में कहां से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! सहस्रार देवलोक । जैसे उपपात कहना परंतु यहाँपर तिर्यंच नहीं उत्पन्न होते हैं यावत् संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्य आणत देवलोक में उत्पन्न होने योग्य हो तो कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम !.. सहस्रार देवलोक में उत्पन्न होने वाले मनुष्य की जैसी वक्तव्यता कही वैसे ही यहां कहना परंतु संघयन र तीन कहना शेष अनुबंध पर्यंत वैसे ही कहना. भवादेश से जघन्य तीन भव उत्कृष्ट सात भव कालादेश से जपत्य अठारह सागरोपम उत्कृष्ट दो प्रत्येक वर्ष अधिक सत्तावन सागरोपम चार पूर्ण कोड चोवीसवा शतकका चौबीसवा उद्देशा-410 1
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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