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________________ 200 . २६७१ पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगाती) सूत्र ण भण्णइ ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ चउवीसइम सयस्स एकवीसइमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २४ ॥ २१ ॥ वाणमंतराणं भंते ! कओहिंतो उववजंति किं गेरइएहिंतो उवयजति तिरिक्खजोणिय एवं जहेव णागकुमार उद्देसए असणि तहेब गिरवसेसं ॥ जइ सण्णिपंचिंदिय जाव असंखेजवासाउय सणिपंचिंदिय जे भविए वाणमंतर. सेणं भंते ! केवइकाल ? गोयमा ! जहणणं दसवास सहस्स दिईएसु उक्कोसेणं पलिओवमट्टिईएसु सेसं तंचेब, जहा णागकुमार उद्देसए जाव कालादसेणं जहण्णेणं साइरेगाई पुव्वकोड़ी कहना. शेष छ गमा कहना. नहीं ; क्योंकि सर्वार्थ सिद्ध में से जघन्य उत्कृष्ट स्थिति नहीं है. यह चौवीसवा | 5 शतक का इक्कीसवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥ २१॥ (०) (०) 2 अहो भगवन् ! वाणव्यंतर कहां से उत्पन्न होते हैं क्या नारकी में से, मनुष्य में से या देव में है ? अहो गौतम ! जैसे नागकुमार उद्दशा में अज्ञी वैस ही विशेषता रहित रहना. यदि संज्ञी पंचेन्द्रिय यावत् असंख्यात वर्षवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय वाणव्यंतर में उत्पन्न होने योग्य होवे वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम : जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट पल्योपम. शेष सब नागकुमार जैसे यावत् । चौवीसवा शतकका बावासवा उद्दशा -882 भावार्थ 4.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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