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भावार्थ
49 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
तेत्तीस सागरोमाई, एवं अणुबंधोवि, सेसं तंचेव, भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणेणं तेतीसं सागरोत्रमाई वासपुहुत्त मन्भहियाई, उक्कोसेणं तेतीसं सागरमाई पुत्र कोडी अन्महियाई, एवइयं जात्र करेजा ॥ सोचैव जहण्णकाल ट्टिईएस उबवण्णो एसचैव वत्तव्या णवरं कालादेसेणं जहष्णेणं तेत्तीस सागरोवमाई बासपुहुत्तमम्भहियाई ॥ सचित्र उक्कोसकालट्ठिईएस उबवण्णो एसचे वक्तव्वया, नवरं कालादेसेणं जहणेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुञ्चकोडीए अब्भहियाई उक्कोसेणवि तेत्तीस सागरो माई पुनकोडीए अब्भहियाई, एवइयं एएचेत्र तिष्णि गमा सेसा योग्य होवे तो कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जैसे विजयादि देव वैसे ही कहना. स्थिति अजघन्यअनुरूप तेतीस सागरोपम की, ऐसे ही अनुबंध. कालादेश से जघन्य तेत्तीस सागरोपम व प्रत्येक वर्षं अधिक और उत्कृष्ट तेत्तीस अधिक. इतना यावत् करे. वही जघन्य स्थिति में उत्पन्न हुवा वही वक्तव्यता कहना परंतु कालादेश से जघन्य तेत्तीस सागरोपम प्रत्येक वर्ष अधिक, वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा कालादेश से जघन्य तेत्तीस सागरोपम पूर्व क्रोड अधिक और उत्कृष्ट भी तेत्तीस सागरोपम पूर्व क्रोड अधिक. ये तीन गमा
की वक्तव्यता कही
भवादेश से दो भव. सागरोपम व पूर्व कोड
** प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवमायजी ज्वालाप्रस
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