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________________ .00 6° पुवकोडी आउएसु उववज्जेजा, अवसेसं जहा आणयदेवस्सवत्तम्बया, णवर औगाहणा एगे भवधारणिजसररिए से जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग, उक्कोसेणं दोरयणीओ, संठाणं एगे भवधारणिज्जसरीरए से समच उरंस संठाणसंठिए, पंचसमुग्धाया पण्णत्ता तंजहा-वेयणासमुग्घाए जाव तेयगसमुग्धाए, णो देवणं वेउव्वियतयग समुग्धाएहिं समोहणिंसुवा समोहणतिवा समोहणिस्संतिया ॥ ठिति अणुवंधा जहण्णेणं वावीसं सागरोबमाई, उक्कोसेणं एकतीसं सागरोवमाइं. सेसं संचव ॥ कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई वासपुहुत्त मन्भहियाई, उक्कोसेणं तेणउति सागरोबमाई भावार्थ विमान में से जो देव मनुष्य में उत्पन्न होने योग्य होवे वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य प्रत्येक वर्ष उत्कृष्ट पूर्व क्रोडके आयुष्य में उत्पन्न होवे अवशेष सत्र आणत. देवलोक की वक्तव्यता कहना परंतु अवगाहना जघन्य अंगूल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट दो हाथ. संठाण भवधारणीय शरीर का एक समचतुस्र, वेदना, कषाय, यावत् तेजप्त ऐनी पांच ममुद्धात परंतु वैक्रेय तेजस समुद्धात अतीत 12 काल में की नहीं वर्तमान में करते नहीं और आगामी नहीं करेंगे, स्थिति व : अनुबंध जघन्य बावीस 19 सागरोवम उत्कृष्ट इकतीस सागरोवम शेष वैसे ही कालादेश से जघन्य बावीस सागरोपम प्रत्येक वर्ष । पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 4.98 चासवा शतक का इक्कीसवा उद्दशा 660
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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