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मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
छावाटुं सागरोवमाइं ॥७॥ जइ कप्पातीत वेमाणिय देवेहितो उववजंति किं गेवेजग कप्पातीत देवहितो उववजंति अणुत्तरोववाइय कप्पातीत वेमाणिय देबेहितो उववजंति? गोयमा ! गेवजग कप्पातीत अणुत्तरोववाइय वैमाणिय० ॥ जइ गेवेज्जग कप्पातीत
वेमाणियदेवे. किं हेट्ठिम हेट्ठिम गेवेजग कप्पातीत वेमाणिय जाव उवरिम २ • गेवेजग ? गोयमा ! हेट्रिम हट्रिम गेवेजग कप्पातीत जाव उवरिम २ गेवेजग कप्पातीत । गेवेजग देवेणं भंते ! जे भविए मणुस्से मु उववजित्तए सेणं भंते !
केवइय कालट्ठिईएसु उववजेजा ? गोयमा ! जहण्णणं वाप्तपुहुत्त ट्ठिईएसु उक्कोसेणं अच्युत पर्यंत कहना परंतु स्थिति अनुबंध व संबंध इसका कहना प्राणत देवलोक में स्थिति से तीन बुना संबंध साठ सागरोपम व आरण का तेसठ सागरोपम अच्युत का छासठ सागरोपम
कम से उत्पन्न होवे तो क्या वेयक कल्पातीत वैमानिक देव में से उत्पन्न होवे या अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव में से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! अबेयक और अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैपानिक देव में से उत्पन्न होते. यदि ग्रेयेयक में से उत्पन्न होवे तो क्या सब से नीचे की ग्रैवेयक में से उत्पन्न होवे या सब मे उपर की ग्रैवेयक में से उत्पन्न होवे ? अहो, गौतम ! सब से नीचे की यावत् सब से उपर की ग्रेवेयक में से उत्पन्न झवे. अहो भगवन् ! गैवेयक
प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालप्रसादजी .
भावार्थ