________________
२६४८
43 अनुवादक-गालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अणुबंधोत्ति ॥ भवादेसेणं दो भवग्गहणाई,कालादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाई
अंतोमुत्तमब्भहियाई उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुवकोडीऐ अब्भहियाइं॥सोचेव अप्पणा जहण्ण कालट्ठिईओ जाओ जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुन्चकोडीआउएसु उववज्जति, लद्दी से जहा एतस्सचेव सण्णिपंचिंदियरस पुढवीकाइएसु उववजमा
णस्स मझिल्लएसु तिसु गमएसु सव्वेव इहवि मज्झिमेसु तिसु गमएमु कायव्वा संवेहो __जहेव एत्थचेव असण्णि, मज्झिमेसु तिसु गमएमु ॥ सोचे अप्पणा उक्कोसकाल
द्वितीओ जाओ जहा पढमगमए णवरं द्विती अणुबंधो जहण्णेणं पुव्वकोडी उक्कोसेणवि
पुवकोडी, कालादेसेणं जहण्णेणं पुब्बकोडी अंतोमुहुत्त मन्भहियाई उक्कोसेणं तिणि क्रोड आधिक. वही जघन्य स्थितिबाला जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व क्रोड के आयुष्य में उत्पन्न होवे. जैसे पृथ्वीकाया में संज्ञी पंचेन्द्रिय के उत्पन्न होने के बीच के तीन गमा कहे वे सब यहां कहना. संबंध असंज्ञी पंचेन्द्रिय का यहां पर उत्पन्न होने के तीन गमा जैसे कहना. अब वही उत्कृष्ट स्थितिबाला वगैरह पहिला गमा जैसे परंतु स्थिति और अनुबंध जघन्य उत्कृष्ट पूर्व क्रोड का कहना. कालादेश से अघन्य पूर्व क्रोड व अंर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट तीन पस्योपम और प्रत्येक कोड पूर्व अधिक. वही जघन्य
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ