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________________ AAM पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 488 भंतेत्ति जाब विहरइ चउवसिइमसयरस चउद्दसमो उद्देसी ॥ २४ ॥ १४ ॥ वाउकाइयाणं भंते ! कओहिंतो उववजंति, एवं जहेव तेऊकाइय उद्देसो तहेव णवरं ट्ठिई संवेहंच जागेज्जा सेबं भंते ! २ ति ॥ चउवीस • पण्णरसमो॥२४॥१५॥ वणस्सइकाइयाणं भंते ! कओहिंतो उववजंति, एवं पुढवीकाइय उद्देसो सरिसो णवरं जाहे वणस्सइकाइया वणस्सइकाइएसु उश्वजति, ताहे पढमविइय चउत्थ पंचमेसु गमेसु परिमाण अणुसमयं अविरहियं अगंता उववज्जति, भवाइसेणं जहण्णेणं दो अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यों कह कर विचरने लगे. यह चौवीसवा शतक का चौदहवाई उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥ १४ ॥ है अहो भगवन् ! वायुकाया कहां से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जैसे तेउकाया. का उद्देशा कहा वैसे ही कहना. परंतु स्थिति और संबंध वायुकाया का जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं, यों कहकर यावत् विचरने लगे. यह चौवीसवा शतक का पनरहवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥ १५॥ . 13 } अहो भगवन् ! वनस्पतिकायिक कहां से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम! जैसे पृथ्वीकाया का उद्देशा कहा वैसे ही कहना. जय बनस्पतिकाया वनस्पतिकाया में उत्पन्न होवे तब पहिला, दूसरा, चौथा और । 4883 चौवीसवा शतक के १५-१६ उद्देशे 488 भावार्थ | - 1
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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